<p style="text-align: justify;"><strong>नोएडा: </strong>लाइसेंस राज की कब्र खोदकर जब नई आर्थिक उदारीकरण की नीति को अपनाया गया तो उस दौर के युवाओं की खाली जेबें पहली बार भरती चली गईं तब बड़े शहरों की तंग गलियों से दूर उन्होंने अपने लिए नए आशियाने की तलाश शुरू कर दी. बड़े शहरों के आसापस कंक्रीट के जंगल तेज़ी से उगने लगे. यही वजह है कि आज नोएडा और ग्रेटर नोएडा में हर तरफ ऊंची ऊंची इमारतें नए बनते भारत की आन बान शान दिखते हैं, लेकिन सच्चाई ये है कि लालची बिल्डरों, सरकारी महकमों की लापरवही और राजनेताओं की मिलीभगत ने कई के सपने लूटे लिए तो कई ज़िंदगियां हमेशा के लिए खामोश कर दी गईं.</p> <p style="text-align: justify;">अब मंगलवार रात को ही देखिए. ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी गांव में एक छह मंजिला निर्माणधीन इमारत बगल के एक इमारत पर तास के पत्तों की तरह ढह गई. हादसे में कम से कम तीन लोगों की मौत हो गई और कई अन्य जख्मी हैं.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>आशियाने की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं बायर्स </strong>यूं तो नोएडा की पैदाइश 1976 में हो चुकी थी, लेकिन इसके विकास ने रफ्तार 1991 के बाद पकड़ी. दिल्ली के सटे यमुना के तट पर जब नोएडा को बसाया गया और विस्तार दिया गया तो कभी कानूनी अड़चनें तो कभी सरकारी महकमों की अनदेखी ने लोगों को खूब परेशान किया. इस शहर में अब भी ऐसे हज़ारों लोग मिल जाएंगे, जिन्होंने अपने जीवनभर की जमा पूंजी से घर खरीदा लेकिन आज भी आशियाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं.</p> <p style="text-align: justify;"><strong><a href="https://abpnews.abplive.in/india-news/live-two-buildings-collapsed-in-shah-beri-village-greater-noida-news-and-updates-915741">ग्रेटर नोएडा में दो बिल्डिंग गिरने से 3 की मौत, मलबे में दबे 30 से 35 लोग, दो जिंदा निकले</a></strong></p> <p style="text-align: justify;">बड़े-बड़े बिल्डर्स ऊंची-ऊंची इमारतों के नाम पर पैसे तो लिए लेकिन कब्जा नहीं दिया. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, करीब डेढ़ लाख लोग हैं जिनसे बिल्डर्स ने पैसे तो ले लिए मगर पजेशन नहीं दिया. अब वह अदालतों का दरवाजा खटखटा रहे हैं. अदालत सुपरटेक लिमिटेड, यूनिटेक, आम्रपाली और जेपी इंफ्रास्टक्चर जैसे कई रियल एस्टेट डेवलपर को कई बार फटकारें भी लगा चुकी है. लेकिन आज भी बायर्स घर के लिए बिल्डिंग कैंपस के बाहर धरना दे रहे हैं. इस उम्मीद से की उनकी खून-पसीने की कमाई से एक अदद आशियाना मिल जाए.</p> <p style="text-align: justify;">बिल्डरों ने प्रकृति से भी खूब छेड़छाड़ की. जहां कभी जंगल का मंगल और चिड़ियों की चहचहाट रहती थी आज गगनचुंबी इमारतें खड़ी है. सुप्रीम कोर्ट ने ओखला पक्षी विहार के पास बने कई प्रोजेक्ट्स रद्द कर दिये. इस वजह से भी कई बायर्स का पैसा बिल्डर के पास फंसा.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>नोएडा ने रोजगार तो पैदा किया लेकिन...</strong> देशभर से लोगों ने रोजगार और अच्छी शिक्षा के लिए शहर की तरफ भागना शुरू किया तो दिल्ली जैसे शहर के पास जगह नहीं बची. लोग आसपास के क्षेत्रों में शिफ्ट होने लगे. नोएडा और ग्रेटर नोएडा इनमें से एक है. बड़ी संख्या में फैक्ट्री, आईटी, आईटीईएस, बीपीओ, बीमा, फार्मा, ऑटो आदि के लिए पसंदीदा जगह बन गई. लोग शहर में बसने लगे उसी के साथ समस्याएं भी खड़ी होने लगी. 2011 की जनगणना के मुताबिक केवल नोएडा की आबादी 6,37,272 और ग्रेटर नोएडा की जनसंख्या 107,676 है. यहां हर दिन लाखों लोग दिल्ली और आसपास के इलाकों से रोजगार के लिए आते हैं. सड़कों पर सुबह और शाम हर दिन लगने वाला जाम इसकी कहानी बयां करने के लिए काफी है.</p> <p style="text-align: justify;">शहर में कई ऐसे इलाके हैं जहां लोगों को पानी और बिजली जैसी बेसिक जरूरतों से की कमी से भी जूझना पड़ता है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा और ग्रेटर नोएडा में रेप और हत्या जैसे अपराध के मामले में भी बढ़ोतरी हुई है.</p> <p style="text-align: justify;"><strong><a href="https://abpnews.abplive.in/uttar-pradesh/according-to-noida-website-no-work-done-in-the-villages-since-2011-910400">नोएडा की वेबसाइट के अनुसार गांवों में 2011 से नहीं हुआ कोई काम</a></strong></p>
from india-news https://ift.tt/2NoVGHB
Post Top Ad
Responsive Ads Here
Wednesday, 18 July 2018
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Post Bottom Ad
Responsive Ads Here
Author Details
Templatesyard is a blogger resources site is a provider of high quality blogger template with premium looking layout and robust design. The main mission of templatesyard is to provide the best quality blogger templates which are professionally designed and perfectlly seo optimized to deliver best result for your blog.
No comments:
Post a Comment